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Friday, 29 July 2016

रिटर्न ऑफ डाइनासोरस

 कल्पना कीजिये  अगर आज के दुनिया मे झ करोरों लोग रहते है ---पुराने जमने का विशाल सरीसृप डायनासोर बापस आ जाए ----

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Tuesday, 26 July 2016

चंद्रकांता संतति-5

चंद्रकांता संतति को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नौगढ़ और विजयगढ़ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह को आपस मे प्रेम है, लेकिन राजपरिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नौगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का ज़िम्मेदार मानते हैं। हालांकि इसका ज़िम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेंद्र की प्रमुख कथा के साथ-साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेंद्र तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चंद्रकांता के परिणय से होता है।......यह इस महान गाथा का दूसरा भाग है ----



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Sunday, 24 July 2016

80 दिन मे दुनिया सैर

The story starts in London on Tuesday, October 1, 1872.
Phileas Fogg is a rich British gentleman living in solitude. Despite his wealth, Fogg lives a modest life with habits carried out with mathematical precision. Very little can be said about his social life other than that he is a member of the Reform Club. Having dismissed his former valet, James Forster, for bringing him shaving water at 84 °F (29 °C) instead of 86 °F (30 °C), Fogg hires aFrenchman by the name of Jean Passepartout as a replacement.
At the Reform Club, Fogg gets involved in an argument over an article in The Daily Telegraph stating that with the opening of a newrailway section in India, it is now possible to travel around the world in 80 days. He accepts a wager for £20,000 (equal to about £1.6 million today) from his fellow club members, which he will receive if he makes it around the world in 80 days. Accompanied by Passepartout, he leaves London by train at 8:45 P.M. on Wednesday, October 2, 1872, and is due back at the Reform Club at the same time 80 days later, Saturday, December 21, 1872.
                          80 दिन मे दुनिया सैर

विर्हत विमान शाश्त्र

दोस्तो यह लिंक अपडेट कर दिया गया है- 

जन सामान्य में हमारे प्राचीन ऋषियों-मुनियों के बारे में ऐसी धारणा जड़ जमाकर बैठी हुई है कि वे जंगलों में रहते थे, जटाजूटधारी थे, भगवा वस्त्र पहनते थे, झोपड़ियों में रहते हुए दिन-रात ब्रह्म-चिन्तन में निमग्न रहते थे, सांसारिकता से उन्हें कुछ भी लेना-देना नहीं रहता था।
इसी पंगु अवधारणा का एक बहुत बड़ा अनर्थकारी पहलू यह है कि हम अपने महान पूर्वजों के जीवन के उस पक्ष को एकदम भुला बैठे, जो उनके महान् वैज्ञानिक होने को न केवल उजागर करता है वरन् सप्रमाण पुष्ट भी करता है। महर्षि भरद्वाज हमारे उन प्राचीन विज्ञानवेत्ताओं में से ही एक ऐसे महान् वैज्ञानिक थे जिनका जीवन तो अति साधारण था लेकिन उनके पास लोकोपकारक विज्ञान की महान दृष्टि थी।
महर्षि भारद्वाज और कोई नही बल्कि वही  ऋषि है जिन्हें त्रेता युग में  भगवान श्री राम से मिलने का सोभाग्य दो बार प्राप्त हुआ । एक बार श्री राम के  वनवास काल में तथा दूसरी बार श्रीलंका से लौट कर अयोध्या जाते समय। इसका वर्णन वाल्मिकी रामायण तथा तुलसीदास कृत रामचरितमानस में मिलता है |
 तीर्थराज प्रयाग में संगम से थोड़ी दूरी पर इनका आश्रम था, जो आज भी विद्यमान है। महर्षि भरद्वाज की दो पुत्रियाँ थीं, जिनमें से एक (सम्भवत: मैत्रेयी) महर्षि याज्ञवल्क्य को ब्याही थीं और दूसरी इडविडा (इलविला) विश्रवा मुनि को |
महाभारत काल तथा उससे पूर्व भारतवर्ष में भी विमान विद्या का विकास हुआ था । न केवल विमान अपितु अंतरिक्ष में स्थित नगर रचना भी हुई थी | इसके अनेक संदर्भ प्राचीन वांग्मय में मिलते हैं । 
निश्चित रूप से उस समय ऐसी विद्या अस्तित्व में थी जिसके द्वारा भारहीनता (zero gravity) की स्थति उत्पन्न की जा सकती थी । यदि पृथ्वी की गरूत्वाकर्षण शक्ति का उसी मात्रा में विपरीत दिशा में प्रयोग किया जाये तो भारहीनता उत्पन्न कर पाना संभव है |
विद्या वाचस्पति पं. मधुसूदन सरस्वती " इन्द्रविजय " नामक ग्रंथ में ऋग्वेद के छत्तीसवें सूक्त प्रथम मंत्र का अर्थ लिखते हुए कहते हैं कि ऋभुओं ने तीन पहियों वाला ऐसा रथ बनाया था जो अंतरिक्ष में उड़ सकता था । पुराणों में विभिन्न देवी देवता , यक्ष , विद्याधर आदि विमानों द्वारा यात्रा करते हैं इस प्रकार के उल्लेख आते हैं । त्रिपुरासुर याने तीन असुर भाइयों ने अंतरिक्ष में तीन अजेय नगरों का निर्माण किया था , जो पृथ्वी, जल, व आकाश में आ जा सकते थे और भगवान शिव ने जिन्हें नष्ट किया ।

 वेदों मे विमान संबंधी उल्लेख अनेक स्थलों पर मिलते हैं। ऋषि देवताओं द्वारा निर्मित तीन पहियों के ऐसे रथ का उल्लेख ऋग्वेद (मण्डल 4, सूत्र 25, 26) में मिलता है, जो अंतरिक्ष में भ्रमण करता है। ऋषिओं ने मनुष्य-योनि से देवभाव पाया था। देवताओं के वैद्य अश्विनीकुमारों द्वारा निर्मित पक्षी की तरह उडऩे वाले त्रितल रथ, विद्युत-रथ और त्रिचक्र रथ का उल्लेख भी पाया जाता है। महाभारत में श्री कृष्ण, जरासंध आदि के विमानों का वर्णन आता है ।

वाल्मीकि रामायण में वर्णित ‘पुष्पक विमान’ (जो लंकापति रावण के पास था) के नाम से तो प्राय: सभी परिचित हैं। लेकिन इन सबको कपोल-कल्पित माना जाता रहा है। लगभग छह दशक पूर्व सुविख्यात भारतीय वैज्ञानिक डॉ0 वामनराव काटेकर ने अपने एक शोध-प्रबंध में पुष्पक विमान को अगस्त्य मुनि द्वारा निर्मित बतलाया था, जिसका आधार `अगस्त्य संहिता´ की एक प्राचीन पाण्डुलिपि थी। अगस्त्य के `अग्नियान´ ग्रंथ के भी सन्दर्भ अन्यत्र भी मिले हैं। इनमें विमान में प्रयुक्त विद्युत्-ऊर्जा के लिए `मित्रावरुण तेज´ का उल्लेख है। महर्षि भरद्वाज ऐसे पहले विमान-शास्त्री हैं, जिन्होंने अगस्त्य के समय के विद्युत् ज्ञान को अभिवर्द्धित किया। 
 महर्षि भारद्वाज ने " यंत्र सर्वस्व " नामक ग्रंथ लिखा था, जिसमे सभी प्रकार के यंत्रों के बनाने तथा उन के संचालन का विस्तृत वर्णन किया। उसका एक भाग वैमानिक शास्त्र है |
इस ग्रंथ के पहले प्रकरण में प्राचीन विज्ञान विषय के पच्चीस ग्रंथों की एक सूची है, जिनमें प्रमुख है अगस्त्यकृत - शक्तिसूत्र, ईश्वरकृत - सौदामिनी कला, भरद्वाजकृत - अशुबोधिनी, यंत्रसर्वसव तथा आकाश शास्त्र, शाकटायन कृत - वायुतत्त्व प्रकरण, नारदकृत - वैश्वानरतंत्र, धूम प्रकरण आदि ।

 विमान शास्त्र की टीका लिखने वाले बोधानन्द लिखते है -
 निर्मथ्य तद्वेदाम्बुधिं भरद्वाजो महामुनिः । 
 नवनीतं समुद्घृत्य यन्त्रसर्वस्वरूपकम्‌ ।
 प्रायच्छत्‌ सर्वलोकानामीप्सिताज्ञर्थ लप्रदम्‌ ।
 तस्मिन चत्वरिंशतिकाधिकारे सम्प्रदर्शितम्‌ ॥ 
 नाविमानर्वैचित्र्‌यरचनाक्रमबोधकम्‌ । 
 अष्टाध्यायैर्विभजितं शताधिकरणैर्युतम । 
 सूत्रैः पञ्‌चशतैर्युक्तं व्योमयानप्रधानकम्‌ । 
 वैमानिकाधिकरणमुक्तं भगवतास्वयम्‌ ॥ 

अर्थात - भरद्वाज महामुनि ने वेदरूपी समुद्र का मन्थन करके यन्त्र सर्वस्व नाम का ऐसा मक्खन निकाला है , जो मनुष्य मात्र के लिए इच्छित फल देने वाला है । उसके चालीसवें अधिकरण में वैमानिक प्रकरण जिसमें विमान विषयक रचना के क्रम कहे गए हैं । यह ग्रंथ आठ अध्याय में विभाजित है तथा उसमें एक सौ अधिकरण तथा पाँच सौ सूत्र हैं तथा उसमें विमान का विषय ही प्रधान है । ग्रंथ के बारे में बताने के बाद बोधानन्द भरद्वाज मुनि के पूर्व हुए आचार्य व उनके ग्रंथों के बारे में लिखते हैं |  वे आचार्य तथा उनके ग्रंथ निम्नानुसार हैं ।
( १ ) नारायण कृत - विमान चन्द्रिका ( २ ) शौनक कृत न् व्योमयान तंत्र ( ३ ) गर्ग - यन्त्रकल्प ( ४ ) वायस्पतिकृत - यान बिन्दु + चाक्रायणीकृत खेटयान प्रदीपिका ( ६ ) धुण्डीनाथ - व्योमयानार्क प्रकाश 
  
विमान की परिभाषा देते हुए अष् नारायण ऋषि कहते हैं जो पृथ्वी, जल तथा आकाश में पक्षियों के समान वेग पूर्वक चल सके, उसका नाम विमान है ।
शौनक के अनुसार- एक स्थान से दूसरे स्थान को आकाश मार्ग से जा सके ,
विश्वम्भर के अनुसार - एक देश से दूसरे देश या एक ग्रह से दूसरे ग्रह जा सके, उसे विमान कहते हैं ।  
अन्तर्राष्ट्रीय संस्कृत शोध मण्डल ने प्राचीन पाण्डुलिपियों की खोज के विशेष प्रयास किये। फलस्वरूप् जो ग्रन्थ मिले, उनके आधार पर भरद्वाज का `विमान-प्रकरण´, विमान शास्त्र प्रकाश में आया। इस ग्रन्थ का बारीकी से अध्यन करने पर आठ प्रकार के विमानों का पता चला : 
1. शक्त्युद्गम - बिजली से चलने वाला। 
2. भूतवाह - अग्नि, जल और वायु से चलने वाला। 
3. धूमयान - गैस से चलने वाला। 
4. शिखोद्गम - तेल से चलने वाला। 
5. अंशुवाह - सूर्यरश्मियों से चलने वाला। 
6. तारामुख - चुम्बक से चलने वाला। 
7. मणिवाह - चन्द्रकान्त, सूर्यकान्त मणियों से चलने वाला। 
8. मरुत्सखा - केवल वायु से चलने वाला। 


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Saturday, 23 July 2016

समान्य ज्ञान-GK

दोस्तो यहा आप समान्य ज्ञान का फ्री पीडीएफ़ फ्री डाउन्लोड कर सकते है । ...... अच्छा या बुरा टिपणी जरूर करे----
समान्य ज्ञान-GK-1
समान्य ज्ञान-GK-2
समान्य ज्ञान-GK-3
समान्य ज्ञान-GK-4

डॉ वेंकटा रमना-बायोग्राफ़ि

चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को हुआ था, जो कि कावेरी नदी के किनारे स्थित है। इनके पिता चंद्रशेखर अय्यर एक स्कूल में पढ़ाते थे। वह भौतिकी और गणित के विद्वान और संगीत प्रेमी थे। चंद्रशेखर वेंकट रामन की माँ पार्वती अम्माल थीं। उनके पिता वहाँ कॉलेज में अध्यापन का कार्य करते थे और वेतन था मात्र दस रुपया। उनके पिता को पढ़ने का बहुत शौक़ था। इसलिए उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी-सी लाइब्रेरी बना रखा थी। रामन का विज्ञान और अंग्रेज़ी साहित्य की पुस्तकों से परिचय बहुत छोटी उम्र से ही हो गया था। संगीत के प्रति उनका लगाव और प्रेम भी छोटी आयु से आरम्भ हुआ और आगे चलकर उनकी वैज्ञानिक खोजों का विषय बना। वह अपने पिता को घंटों वीणा बजाते हुए देखते रहते थे। जब उनके पिता तिरुचिरापल्ली से विशाखापत्तनम में आकर बस गये तो उनका स्कूल समुद्र के तट पर था। उन्हें अपनी कक्षा की खिड़की से समुद्र की अगाध नीली जलराशि दिखाई देती थी। इस दृश्य ने इस छोटे से लड़के की कल्पना को सम्मोहित कर लिया। बाद में समुद्र का यही नीलापन उनकी वैज्ञानिक खोज का विषय बना।
  • छोटी-सी आयु से ही वह भौतिक विज्ञान की ओर आकर्षित थे।
  • एक बार उन्होंने विशेष उपकरणों के बिना ही एक डायनमों बना डाला।
  • एक बार बीमार होने पर भी वह तब तक नहीं माने थे जब तक कि पिता ने 'लीडन जार' के कार्य का प्रदर्शन करके नहीं दिखाया।
  • रामन अपनी कक्षा के बहुत ही प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे।
  • उन्हें समय-समय पर पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं।
  • अध्यापक बार-बार उनकी अंग्रेज़ी भाषा की समझ, स्वतंत्रप्रियता और दृढ़ चरित्र की प्रशंसा करते थे।
  • केवल ग्यारह वर्ष की उम्र में वह दसवीं की परीक्षा में प्रथम आये।
  • मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पहले दिन की कक्षा में यूरोपियन प्राध्यापक ने नन्हें रामन को देखकर कहा कि वह ग़लती से उनकी कक्षा में आ गये हैं------

भौतिकी का नोबेल पुरस्कार सन् 1927 में, अमेरिका में, शिकागो विश्वविद्यालय के ए. एच. कॉम्पटन को 'कॉम्पटन इफेक्ट' की खोज के लिये मिला। कॉम्पटन इफेक्ट में जब एक्स-रे को किसी सामग्री से गुज़ारा गया तो एक्स-रे में कुछ विशेष रेखाएँ देखी गईं। (प्रकाश की तरह की एक इलेक्ट्रोमेगनेटिक रेडियेशन की किस्म)। कॉम्पटन इफेक्ट एक्स-रे कणीय प्रकृति के कारण उत्पन्न होता है। रामन को लगा कि उनके प्रयोग में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।
प्रकाश की किरण कणों (फोटोन्स) की धारा की तरह व्यवहार कर रही थीं। फोटोन्स रसायन द्रव के अणुऔं पर वैसे ही आघात करते थे जैसे एक क्रिकेट का बॉल फुटबॉल पर करता है। क्रिकेट का बॉल फुटबॉल से टकराता तो तेज़ी से है लेकिन वह फुटबॉल को थोड़ा-सा ही हिला पाता है। उसके विपरीत क्रिकेट का बॉल स्वयं दूसरी ओर कम शक्ति से उछल जाता है और अपनी कुछ ऊर्जा फुटबाल के पास छोड़ जाता है। कुछ असाधारण रेखाएँ देती हैं क्योंकि फोटोन्स इसी तरह कुछ अपनी ऊर्जा छोड़ देते हैं और छितरे प्रकाश के स्पेक्ट्रम में कई बिन्दुओं पर दिखाई देते हैं। अन्य फोटोन्स अपने रास्ते से हट जाते हैं—न ऊर्जा लेते हैं और न ही छोड़ते हैं और इसलिए स्पेक्ट्रम में अपनी सामान्य स्थिति में दिखाई देते हैं।
फोटोन्स में ऊर्जा की कुछ कमी और इसके परिणाम स्वरूप स्पेक्ट्रम में कुछ असाधारण रेखाएँ होना 'रामन इफेक्ट' कहलाता है। फोटोन्स द्वारा खोई ऊर्जा की मात्रा उस द्रव रसायन के द्रव के अणु के बारे में सूचना देती है जो उन्हें छितराते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के अणु फोटोन्स के साथ मिलकर विविध प्रकार की पारस्परिक क्रिया करते हैं और ऊर्जा की मात्रा में भी अलग-अलग कमी होती है। जैसे यदि क्रिकेट बॉल, गोल्फ बॉल या फुटबॉल के साथ टकराये। असाधारण रामन रेखाओं के फोटोन्स में ऊर्जा की कमी को माप कर द्रव, ठोस और गैस की आंतरिक अणु रचना का पता लगाया जाता है। इस प्रकार पदार्थ की आंतरिक संरचना का पता लगाने के लिए रामन इफेक्ट एक लाभदायक उपकरण प्रमाणित हो सकता है। रामन और उनके छात्रों ने इसी के द्वारा कई किस्म के ऑप्टिकल ग्लास, भिन्न-भिन्न पदार्थों के क्रिस्टल, मोती, रत्न, हीरे और क्वार्टज, द्रव यौगिक जैसे बैन्जीन, टोलीन, पेनटेन और कम्प्रेस्ड गैसों का जैसे कार्बन डायाक्साइड, और नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि में अणु व्यवस्था का पता लगाया।
रामन अपनी खोज की घोषणा करने से पहले बिल्कुल निश्चित होना चाहते थे। इन असाधारण रेखाओं को अधिक स्पष्ट तौर से देखने के लिए उन्होंने सूर्य के प्रकाश के स्थान पर मरकरी वेपर लैम्प का इस्तेमाल किया। वास्तव में इस तरह रेखाएँ अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगीं। अब वह अपनी नई खोज के प्रति पूर्णरूप से निश्चिंत थे। यह घटना 28 फ़रवरी सन् 1928 में घटी। अगले ही दिन वैज्ञानिक रामन ने इसकी घोषणा विदेशी प्रेस में कर दी। प्रतिष्ठित पत्रिका 'नेचर' ने उसे प्रकाशित किया। रामन ने 16 मार्च को अपनी खोज 'नई रेडियेशन' के ऊपर बंगलौर में स्थित साउथ इंडियन साइन्स एसोसिएशन में भाषण दिया। इफेक्ट की प्रथम पुष्टि जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सटी, अमेरिका के आर. डब्लयू. वुड ने की। अब विश्व की सभी प्रयोगशालाओं में 'रामन इफेक्ट' पर अन्वेषण होने लगा। यह उभरती आधुनिक भौतिकी के लिये अतिरिक्त सहायता थी।
विदेश यात्रा के समय उनके जीवन में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटित हुई। सरल शब्दों में पानी के जहाज़ से उन्होंने भू-मध्य सागर के गहरे नीले पानी को देखा। इस नीले पानी को देखकर श्री रामन के मन में विचार आया कि यह नीला रंग पानी का है या नीले आकाश का सिर्फ़ परावर्तन। बाद में रामन ने इस घटना को अपनी खोज द्वारा समझाया कि यह नीला रंग न पानी का है न ही आकाश का। यह नीला रंग तो पानी तथा हवा के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से उत्पन्न होता है क्योंकि प्रकीर्णन की घटना में सूर्य के प्रकाश के सभी अवयवी रंग अवशोषित कर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं, परंतु नीले प्रकाश को वापस परावर्तित कर दिया जाता है। सात साल की कड़ी मेहनत के बाद रामन ने इस रहस्य के कारणों को खोजा था। उनकी यह खोज 'रामन प्रभाव' के नाम से प्रसिद्ध है------
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सरलक होल्म्स की कहानियाँ-Hindi Audio Story

सर आर्थर कानन डायल ने अपनी लेखनी से एक ऐसे सदाबहार जासूसी पात्र को जन्म दिया जिसकी पैनी निगाह, सूझ-बूझ, साहस एवं अनोखी तर्क-शक्ति सबको चमत्कृत करके रख देती थी| उसने अनेक ऐसे षड्यंत्रों का पर्दाफाश किया जो पुलिस के लिए अबूझ पहेली बन चुके थे| उसकी अद्भुत कार्यशैली एक जादूगर की भांति थी|

यह अपने आप में एक ऐसा काल्पनिक पात्र है जिसके सामने उसके अपने सृजनकर्ता (सर आर्थर कानन डायल) की कोई साख नहीं थी| इस पात्र का जादू लोगो के सर ऐसा चढ़ा कि लोग इसे जीवित व्यक्ति समझ बैठे तथा उसके नाम पर डाक विभाग में अनेको पात्र आने लगे| जिनमे उन लोगो कि समस्याएं होती थी|

होम्स पर आधारित अनेक फिल्मे व टेलीविज़न सीरीज बन चुकी हैं| जो लोगों द्वारा बहुत पसंद कि जाती हैं|

सर आर्थर कानन डायल ने होम्स व उसके मित्र वाटसन पर आधारित लगभग अस्सी कहानियां लिखी| जो उसके मित्र डाक्टर वाटसन के माध्यम से लिखी जाती थी| जिनमे चुनी हुई कुछ कहानियां यहां पर प्रस्तुत की जाएंगी| आप लोगों ने ये कहानियां या इन पर आधारित सीरियल पहले भी देखे होंगे| एक बार फिर वही पात्र आपके सामने है| आशा है आप लोगों को पसंद आयेगी----

सरलक होल्म्स की कहानियाँ-Hindi Audio-
Bindio Bala Patta -Part-1
Bindio Bala Patta -Part-2
Bindio Bala Patta -Part-3
Bindio Bala Patta -Part-4
Bindio Bala Patta -Part-5
Bindio Bala Patta -Part-6
Bindio Bala Patta -Part-7
Bindio Bala Patta -Part-8
Bindio Bala Patta -Part-9
Bindio Bala Patta -Part-10
Bindio Bala Patta -Part-11
Bindio Bala Patta -Part-12


Friday, 22 July 2016

सरलक होल्म्स की कहानियाँ

दोस्तो PDF फ़ारमैट उपलोड़े कर दिया ज्ञ है--
सर आर्थर कानन डायल ने अपनी लेखनी से एक ऐसे सदाबहार जासूसी पात्र को जन्म दिया जिसकी पैनी निगाह, सूझ-बूझ, साहस एवं अनोखी तर्क-शक्ति सबको चमत्कृत करके रख देती थी| उसने अनेक ऐसे षड्यंत्रों का पर्दाफाश किया जो पुलिस के लिए अबूझ पहेली बन चुके थे| उसकी अद्भुत कार्यशैली एक जादूगर की भांति थी|

यह अपने आप में एक ऐसा काल्पनिक पात्र है जिसके सामने उसके अपने सृजनकर्ता (सर आर्थर कानन डायल) की कोई साख नहीं थी| इस पात्र का जादू लोगो के सर ऐसा चढ़ा कि लोग इसे जीवित व्यक्ति समझ बैठे तथा उसके नाम पर डाक विभाग में अनेको पात्र आने लगे| जिनमे उन लोगो कि समस्याएं होती थी|

होम्स पर आधारित अनेक फिल्मे व टेलीविज़न सीरीज बन चुकी हैं| जो लोगों द्वारा बहुत पसंद कि जाती हैं|

सर आर्थर कानन डायल ने होम्स व उसके मित्र वाटसन पर आधारित लगभग अस्सी कहानियां लिखी| जो उसके मित्र डाक्टर वाटसन के माध्यम से लिखी जाती थी| जिनमे चुनी हुई कुछ कहानियां यहां पर प्रस्तुत की जाएंगी| आप लोगों ने ये कहानियां या इन पर आधारित सीरियल पहले भी देखे होंगे| एक बार फिर वही पात्र आपके सामने है| आशा है आप लोगों को पसंद आयेगी----



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Sunday, 17 July 2016

चंद्रकांता संतति-2

चंद्रकांता संतति को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नौगढ़ और विजयगढ़ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह को आपस मे प्रेम है, लेकिन राजपरिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नौगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का ज़िम्मेदार मानते हैं। हालांकि इसका ज़िम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेंद्र की प्रमुख कथा के साथ-साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेंद्र तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चंद्रकांता के परिणय से होता है।......यह इस महान गाथा का दूसरा भाग है ----


चंद्रकांता संतति -भाग 2

Friday, 15 July 2016

अलिफ लैला की कहानियाँ-भाग 1

आपने के किस्से सुने होंगे, अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी से भी वाकिफ होंगे, अलादीन और जादुई चिराग के बारे में भी जानते होंगे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह सब कहानियाँ कहाँ से आई हैं?

ये सारी कहानियाँ अरबी भाषा की महान दास्तान अल्फ लैला व लैला से ली गई हैं जिसे पश्चिमी दुनिया में 'अरेबियन नाइट्स' और भारत में हम 'दास्ताने अलिफ लैला' के नाम से जानते हैं।

अरबी में 'अल्फ' का मतलब हजार होता है और लैला का मतलब रात यानी इसमें एक हजार एक रात की कहानी है जो सारी दुनिया में बराबर लोकप्रिय है।

कहानी अपने आप में एक ऐसी घटना का नतीजा है जो जीवन के लिए संघर्ष को दर्शाता है। किसी जमाने में शहरयार नाम का एक बादशाह होता था जिसने अपनी पत्नी की बेवफाई के नतीजे में यह प्रण ले लिया था कि वह अपने राज्य की हर लड़की से शादी करेगा और दूसरे दिन उसे कत्ल कर देगा।

लोग उसका राज्य छोड़ कर भागने पर विवश हो जाते हैं फिर उसी के वज़ीर की बेटी शहरजाद एक योजना के तहत उससे शादी करती है।

उसकी बहन दुनियाजाद उसे आखिरी कहानी सुनाने के लिए कहती है कि कल तो उसका कत्ल हो जाएगा, बादशाह को भी कहानी सुनने की उत्सुकता होती है और वह इजाजत दे देता है, लेकिन शहरजाद कहानी कहना ऐसे समय में छोड़ देती है जब सबकी उत्सुक्ता अपने चरम पर होती है।

बादशाह कहानी का अंजाम सुनने के लिए उसकी मौत को एक दिन के लिए टाल देता है। फिर कहानी के अंदर से कहानी निकलती है और हर रात वह उसे ऐसी जगह छोड़ती है जिसे सुने बिना राजा को रहा नहीं जाता और वह उसकी मौत को टालता रहता है।

यहाँ तक की हजार रात तक कहानी चलती है और इस बीच शहरजाद को तीन बच्चे भी पैदा होते हैं और फिर अगली रात में वह कहानी खत्म करके अपनी तकदीर का फैसला बादशाह पर छोड़ देती है, और बादशाह को यह एहसास होता है कि सारी महिलाएँ एक सी नहीं होतीं-----





दोस्तो इस अपडेट मे अलिफ लैला की भाग एक की पूरी कहानियाँ है। इस पूरे भाग मे कुल 31 कहानिया है तथा इसी भाग मे सिंदवाद की 7 यात्राओ की कहानियाँ भी है।------.... अपडेट कैसा लगा ....अप्पना विचार जरूर 
दे...
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Download-अलिफ लैला की कहानियाँ-भाग 1

Thursday, 14 July 2016

अलिफ लैला की कहानियाँ

आपने के किस्से सुने होंगे, अलीबाबा और चालीस चोर की कहानी से भी वाकिफ होंगे, अलादीन और जादुई चिराग के बारे में भी जानते होंगे, लेकिन क्या आपको मालूम है कि यह सब कहानियाँ कहाँ से आई हैं?

ये सारी कहानियाँ अरबी भाषा की महान दास्तान अल्फ लैला व लैला से ली गई हैं जिसे पश्चिमी दुनिया में 'अरेबियन नाइट्स' और भारत में हम 'दास्ताने अलिफ लैला' के नाम से जानते हैं।

अरबी में 'अल्फ' का मतलब हजार होता है और लैला का मतलब रात यानी इसमें एक हजार एक रात की कहानी है जो सारी दुनिया में बराबर लोकप्रिय है।

कहानी अपने आप में एक ऐसी घटना का नतीजा है जो जीवन के लिए संघर्ष को दर्शाता है। किसी जमाने में शहरयार नाम का एक बादशाह होता था जिसने अपनी पत्नी की बेवफाई के नतीजे में यह प्रण ले लिया था कि वह अपने राज्य की हर लड़की से शादी करेगा और दूसरे दिन उसे कत्ल कर देगा।

लोग उसका राज्य छोड़ कर भागने पर विवश हो जाते हैं फिर उसी के वज़ीर की बेटी शहरजाद एक योजना के तहत उससे शादी करती है।

उसकी बहन दुनियाजाद उसे आखिरी कहानी सुनाने के लिए कहती है कि कल तो उसका कत्ल हो जाएगा, बादशाह को भी कहानी सुनने की उत्सुकता होती है और वह इजाजत दे देता है, लेकिन शहरजाद कहानी कहना ऐसे समय में छोड़ देती है जब सबकी उत्सुक्ता अपने चरम पर होती है।

बादशाह कहानी का अंजाम सुनने के लिए उसकी मौत को एक दिन के लिए टाल देता है। फिर कहानी के अंदर से कहानी निकलती है और हर रात वह उसे ऐसी जगह छोड़ती है जिसे सुने बिना राजा को रहा नहीं जाता और वह उसकी मौत को टालता रहता है।

यहाँ तक की हजार रात तक कहानी चलती है और इस बीच शहरजाद को तीन बच्चे भी पैदा होते हैं और फिर अगली रात में वह कहानी खत्म करके अपनी तकदीर का फैसला बादशाह पर छोड़ देती है, और बादशाह को यह एहसास होता है कि सारी महिलाएँ एक सी नहीं होतीं-----




Download-अलिफ लैला की कहानियाँ-1 & 2

चंद्रकांता संतति-3

चंद्रकांता संतति को एक प्रेम कथा कहा जा सकता है। इस शुद्ध लौकिक प्रेम कहानी को, दो दुश्मन राजघरानों, नौगढ़ और विजयगढ़ के बीच, प्रेम और घृणा का विरोधाभास आगे बढ़ाता है। विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह को आपस मे प्रेम है, लेकिन राजपरिवारों में दुश्मनी है। दुश्मनी का कारण है कि विजयगढ़ के महाराज नौगढ़ के राजा को अपने भाई की हत्या का ज़िम्मेदार मानते हैं। हालांकि इसका ज़िम्मेदार विजयगढ़ का महामंत्री क्रूर सिंह है, जो चंद्रकांता से शादी करने और विजयगढ़ का महाराज बनने का सपना देख रहा है। राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेंद्र की प्रमुख कथा के साथ-साथ ऐयार तेजसिंह तथा ऐयारा चपला की प्रेम कहानी भी चलती रहती है। कथा का अंत नौगढ़ के राजा सुरेन्द्र सिंह के पुत्र वीरेंद्र तथा विजयगढ़ के राजा जयसिंह की पुत्री चंद्रकांता के परिणय से होता है।


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Wednesday, 13 July 2016

एनिमल फार्म

एरिक आर्थर ब्लेयर (25 जून 1903 - 21 जनवरी 1950 [1] ), जो कलम का नाम जॉर्ज ऑरवेल का इस्तेमाल किया, एक अंग्रेजी उपन्यासकार, निबंधकार, पत्रकार, और आलोचक थे। उसका काम चमकदार गद्य, के बारे में जागरूकता के द्वारा चिह्नित है सामाजिक अन्याय , के विरोध अधिनायकवाद , और के मुखर समर्थन लोकतांत्रिक समाजवाद । [2] [3]
ऑरवेल लिखा साहित्यिक आलोचना , कविता, उपन्यास, और विवादात्मक पत्रकारिता। वह शायद सबसे अच्छा उसके लिए जाना जाता है dystopian उपन्यासउन्नीस अस्सी-चार (1949) और रूपक उपन्यास एनिमल फार्म (1945) उनकी गैर कल्पना सहित, काम करता है सड़क विगान पियर करने के लिए (1937), इंग्लैंड के उत्तर में वर्ग के जीवन काम करने के अपने अनुभव का दस्तावेजीकरण, और श्रद्धांजलि केटलोनिआ के लिए (1938), में अपने अनुभवों के एक खाते मेंस्पेन के गृह युद्ध , व्यापक रूप से कर रहे हैं प्रशंसित, के रूप में अपने हैं निबंध राजनीति, साहित्य, पर भाषा और संस्कृति। 2008 में, टाइम्स उसे दूसरे की सूची पर "50 महान ब्रिटिश लेखकों 1945 के बाद से" स्थान पर रहीं। [4]
ऑरवेल के काम को प्रभावित करने के लिए जारी लोकप्रिय और राजनीतिक संस्कृति , और अवधि Orwellian अधिनायकवादी या -descriptive सत्तावादीसामाजिक प्रथाओं-गया है उसकी से कई के साथ एक साथ भाषा में प्रवेश neologisms , सहित शीत युद्ध , बिग ब्रदर , सोचा था कि पुलिस , कक्ष 101 , स्मृति छेद , newspeak , doublethink , और thoughtcrime । [5]
एरिक आर्थर ब्लेयर में जून 1903 को 25 पैदा हुआ था, मोतिहारी , बंगाल प्रेसीडेंसी (वर्तमान बिहार में), ब्रिटिश भारत । [6] उनके परदादा चार्ल्स ब्लेयर एक धनी था देश जेंटलमैन डोरसेट में जो लेडी मैरी मंदिर, की बेटी की शादी Westmorland के अर्ल , और जमैका में वृक्षारोपण का एक अनुपस्थित मकान मालिक के रूप में था आय।[7] उनके दादा, थॉमस रिचर्ड आर्थर ब्लेयर, एक पादरी था। [8] हालांकि उमरा पीढ़ियों के नीचे पारित कर दिया, समृद्धि नहीं किया था; एरिक ब्लेयर "के रूप में अपने परिवार वर्णित कम-उच्च मध्यम वर्ग "। [9] उनके पिता रिचर्ड Walmesley ब्लेयर की अफीम विभाग में काम किया भारतीय सिविल सेवा । [10] उनकी मां, आईडीए माबेल ब्लेयर (उर्फ़ Limouzin), में पले Moulmein , बर्मा, जहां उसके पिता फ्रेंच सट्टा के कारोबार में शामिल किया गया था। [7] एरिक दो बहनों था: मार्जोरी, पांच साल पुराने, और Avril, पांच साल से कम उम्र। जब एरिक एक साल का था, उसकी माँ उसे और इंग्लैंड के लिए उसकी बड़ी बहन लिया। [11] [एन 1] उनके जन्मस्थान और पैतृक घर में मोतिहारी ऐतिहासिक महत्व का संरक्षित स्मारक घोषित किया गया है। [12]
1904 में, आईडीए ब्लेयर में अपने बच्चों के साथ बसे हेनले-ऑन-टेम्स ऑक्सफोर्डशायर में। एरिक ने अपनी मां और बहनों की कंपनी में लाया गया था, और इसके अलावा मध्य 1907 में एक संक्षिप्त यात्रा से, [13] वे पति और पिता रिचर्ड ब्लेयर नहीं देखा था जब तक 1912 [8] 1905 से उनकी माँ की डायरी एक का वर्णन सामाजिक गतिविधि और कलात्मक हितों का जीवंत दौर।
परिवार के लिए ले जाया Shiplake , प्रथम विश्व युद्ध, जहां एरिक Buddicom परिवार के साथ बने दोस्ताना से पहले विशेष रूप से उनकी बेटी Jacintha । जब वे पहली बार मिले थे, वह एक क्षेत्र में उसके सिर पर खड़ा था। पूछे जाने पर जा रहा है यही कारण है, उन्होंने कहा, "आप अधिक देखा जाता है, तो आप अपने सिर पर खड़े अगर आप सही तरीके से कर रहे हैं।" [14] Jacintha और एरिक पढ़ सकते हैं और कविता लिखी है, और प्रसिद्ध लेखकों बनने का सपना देखा। उन्होंने कहा कि वह की शैली में एक किताब लिख सकता है पारा वेल्स के एक आधुनिक यूटोपिया । इस अवधि के दौरान, वह भी शूटिंग, मछली पकड़ने और बर्डवाचिंग Jacintha के भाई और बहन के साथ का आनंद लिया----------------
उनकी रचनाए -----
उपन्यास
nonfiction
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Saturday, 9 July 2016

मेरे सपनों का भारत

महात्मा गांधी जी द्वारा लिखित पुस्तक जो आज भी प्रासंगिक है.....

 महात्मा गाँधी जी बीसवीं सदी के सबसे अधिक प्रभावशाली व्यक्ति हैं; जिनकी अप्रत्यक्ष उपस्थिति उनकी मृत्यु के साठ वर्ष बाद भी पूरे देश पर देखी जा सकती है। उन्होंने भारत की कल्पना की और उसके लिए कठिन संघर्ष किया। स्वाधीनता से उनका अर्थ केवल ब्रिटिश राज से मुक्ति का नहीं था बल्कि वह गरीबी, निरक्षरता और अस्पृश्यता जैसी बुराइयों से मुक्ति का सपना देखते थे। वह चाहते थे कि देश के सारे नागरिक समान रूप से आज़ादी और समृद्धि का सुख पा सकें।

उनके बहुत-से परिवर्तनकारी विचार, जिन्हें उस समय, असंभव कह परे कर दिया गया था, आज न केवल स्वीकार किये जा रहे हैं बल्कि अपनाए भी जा रहे हैं। आज की पीढ़ी के सामने यह स्पष्ट हो रहा है कि गाँधीजी के विचार आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने उस समय थे। यह तथ्य है कि गाँधीगीरी आज के समय का मंत्र बन गया है। यह सिद्ध करता है कि गाँधीजी के विचार इक्कीसवीं सदी के लिए भी सार्थक और उपयोगी हैं-----

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The Jungal Book

The Jungle Book (1894) is a collection of stories by English author Rudyard Kipling. The stories were first published in magazines in 1893–94. The original publications contain illustrations, some by the author's father, John Lockwood Kipling. Kipling was born in India and spent the first six years of his childhood there. After about ten years in England, he went back to India and worked there for about six-and-a-half years. These stories were written when Kipling lived in Naulakha, the home he built in DummerstonVermont(just north of Brattleboro), in the United States.[1] There is evidence that the collection of stories was written for his daughter Josephine, who died in 1899 at six years of age by pneumonia; a rare first edition of the book with a poignant handwritten note by the author to his young daughter was discovered at the National Trust's Wimpole Hall in Cambridgeshire in 2010.[2]
The tales in the book (as well as those in The Second Jungle Book which followed in 1895, and which includes five further stories about Mowgli) are fables, using animals in an anthropomorphic manner to give moral lessons. The verses of The Law of the Jungle, for example, lay down rules for the safety of individuals, families, and communities. Kipling put in them nearly everything he knew or "heard or dreamed about the Indian jungle."[3] Other readers have interpreted the work as allegories of the politics and society of the time.[4] The best-known of them are the three stories revolving around the adventures of Mowgli, an abandoned "man cub" who is raised by wolves in the Indian jungle. The most famous of the other four stories are probably "Rikki-Tikki-Tavi", the story of a heroicmongoose, and "Toomai of the Elephants", the tale of a young elephant-handler. As with much of Kipling's work, each of the stories is followed by a piece of verse...........
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आग्नि पुराण



अग्निपुराण पुराण साहित्य में अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। विषय की विविधता एवं लोकोपयोगिता की दृष्टि से इस पुराण का विशेष महत्त्व है। अनेक विद्वानों ने विषयवस्‍तु के आधार पर इसे 'भारतीय संस्‍कृति का विश्‍वकोश' कहा है। अग्निपुराण में त्रिदेवों – ब्रह्मा, विष्‍णु एवं शिव तथासूर्य की पूजा-उपासना का वर्णन किया गया है। इसमें परा-अपरा विद्याओं का वर्णन, महाभारत के सभी पर्वों की संक्षिप्त कथा, रामायण की संक्षिप्त कथा, मत्स्य, कूर्म आदि अवतारों की कथाएँ, सृष्टि-वर्णन, दीक्षा-विधि, वास्तु-पूजा, विभिन्न देवताओं के मन्त्र आदि अनेक उपयोगी विषयों का अत्यन्त सुन्दर प्रतिपादन किया गया है।

इस पुराण के वक्‍ता भगवान अग्निदेव हैं, अतः यह 'अग्निपुराण' कहलाता है। अत्‍यंत लघु आकार होने पर भी इस पुराण में सभी विद्याओं का समावेश किया गया है। इस दृष्टि से अन्‍य पुराणों की अपेक्षा यह और भी विशिष्‍ट तथा महत्‍वपूर्ण हो जाता है।

पद्म पुराण में भगवान् विष्‍णु के पुराणमय स्‍वरूप का वर्णन किया गया है और अठारह पुराण भगवान के 18 अंग कहे गए हैं। उसी पुराणमय वर्णन के अनुसार ‘अग्नि पुराण’ को भगवान विष्‍णु का बायां चरण कहा गया है।


आधुनिक उपलब्ध अग्निपुराण के कई संस्करणों में ११,४७५ श्लोक है एवं ३८३ अध्याय हैं, परन्तु नारदपुराण के अनुसार इसमें १५ हजार श्लोकों तथा मत्स्यपुराण के अनुसार १६ हजार श्लोकों का संग्रह बतलाया गया है। बल्लाल सेन द्वारा दानसागर में इस पुराण के दिए गए उद्धरण प्रकाशित प्रतियों में उपलब्ध नहीं है। इस कारण इसके कुछ अंशों के लुप्त और अप्राप्त होने की बात अनुमानतः सिद्ध मानी जा सकती है।

अग्निपुराण में पुराणों के पांचों लक्षणों अथवा वर्ण्य-विषयों-सर्ग, प्रतिसर्ग, वंश, मन्वन्तर और वंशानुचरित का वर्णन है। सभी विषयों का सानुपातिक उल्लेख किया गया है।



पुराण साहित्य में अग्निपुराण अपनी व्यापक दृष्टि तथा विशाल ज्ञान भंडार के कारण विशिष्ट स्थान रखता है। साधारण रीति से पुराण को 'पंचलक्षण' कहते हैं, क्योंकि इसमें सर्ग (सृष्टि), प्रतिसर्ग (संहार), वंश, मन्वंतर तथा वंशानुचरित का वर्णन अवश्यमेव रहता है, चाहे परिमाण में थोड़ा न्यून ही क्यों न हो। परंतु अग्निपुराण इसका अपवाद है। प्राचीन भारत की परा और अपरा विद्याओं का तथा नाना भौतिकशास्त्रों का इतना व्यवस्थित वर्णन यहाँ किया गया है कि इसे वर्तमान दृष्टि से हम एक विशाल विश्वकोश कह सकते हैं।आग्नेय हि पुराणेऽस्मिन् सर्वा विद्याः प्रदर्शिताः

यह अग्नि पुराण का कथन है जिसके अनुसार अग्नि पुराण में सभी विधाओं का वर्णन है। यह अग्निदेव के स्वयं के श्रीमुख से वर्णित है इसलिए यह प्रसिद्ध और महत्त्वपूर्ण पुराण है। यह पुराण उन्होंने महर्षि वशिष्ठ को सुनाया था। यह पुराण दो भागों में हैं पहले भाग में ब्रह्म विद्या का सार है। इसको सुनने से देवगण ही नहीं समस्त प्राणी जगत् सुख प्राप्त करता है। विष्णु भगवान के अवतारों का वर्णन है। वेग के हाथ के मंथन से उत्पन्न पृथु का आख्यान है। दिव्य शक्तिमयी मरिषा की कथा है। कश्यप ने अपनी अनेक पत्नियों द्वारा परिवार विस्तार किया उसका वर्णन भी किया गया है।

भगवान् अग्निदेव ने देवालय निर्माण के फल के विषय में आख्यान दिए हैं और चौसठ योगनियों का सविस्तार वर्णन भी है। शिव पूजा का विधान भी बताया गया है। इसमें काल गणना के महत्त्व पर भी प्रकाश डाला गया है। साथ ही इसमें गणित के महत्त्व के साथ विशिष्ट राहू का वर्णन भी है। प्रतिपदा व्रत, शिखिव्रत आदि व्रतों के महत्त्व को भी दर्शाया गया है। साथ ही धीर नामक ब्राह्मण की एक कथा भी है। दशमी व्रत, एकादशी व्रत आदि के महत्त्व को भी बताया गया है।




विषय-सामग्री की दृष्टि से 'अग्नि पुराण' को भारतीय जीवन का विश्वकोश कहा जा सकता है पुराणों के पांचों लक्षणों- सर्ग, प्रतिसर्ग, राजवंश,मन्वन्तर और वंशानुचरित आदि का वर्णन भी इस पुराण में प्राप्त होता है। किन्तु इसे यहाँ संक्षेप रूप में दिया गया है। इस पुराण का शेष कलेवर दैनिक जीवन की उपयोगी शिक्षाओं से ओतप्रोत है।
'अग्नि पुराण' में शरीर और आत्मा के स्वरूप को अलग-अलग समझाया गया है। इन्द्रियों को यंत्र मात्र माना गया है और देह के अंगों को 'आत्मा' नहीं माना गया है। पुराणकार' आत्मा' को हृदय में स्थित मानता है। ब्रह्म से आकाश, आकाश से वायु, वायु से अग्नि, अग्नि से जलऔर जल से पृथ्वी होती है। इसके बाद सूक्ष्म शरीर और फिर स्थूल शरीर होता है।
'अग्नि पुराण' ज्ञान मार्ग को ही सत्य स्वीकार करता है। उसका कहना है कि ज्ञान से ही 'ब्रह्म की प्राप्ति सम्भव है, कर्मकाण्ड से नहीं। ब्रह्म की परम ज्योति है जो मन, बुद्धि, चित्त और अहंकार से भिन्न है। जरा, मरण, शोक, मोह, भूख-प्यास तथा स्वप्न-सुषुप्ति आदि से रहित है।
इस पुराण में 'भगवान' का प्रयोग विष्णु के लिए किया गया है। क्योंकि उसमें 'भ' से भर्त्ता के गुण विद्यमान हैं और 'ग' से गमन अर्थात प्रगति अथवा सृजनकर्त्ता का बोध होता है। विष्णु को सृष्टि का पालनकर्त्ता और श्रीवृद्धि का देवता माना गया है। 'भग' का पूरा अर्थ ऐश्वर्य, श्री, वीर्य, शक्ति, ज्ञान, वैराग्य और यश होता है जो कि विष्णु में निहित है। 'वान' का प्रयोग प्रत्यय के रूप में हुआ है, जिसका अर्थ धारण करने वाला अथवा चलाने वाला होता है। अर्थात जो सृजनकर्ता पालन करता हो, श्रीवृद्धि करने वाला हो, यश और ऐश्वर्य देने वाला हो; वह 'भगवान' है। विष्णु में ये सभी गुण विद्यमान हैं।
'अग्नि पुराण' ने मन की गति को ब्रह्म में लीन होना ही 'योग' माना है। जीवन का अन्तिम लक्ष्य आत्मा और परमात्मा का संयोग ही होना चाहिए। इसी प्रकार वर्णाश्रम धर्म की व्याख्या भी इस पुराण में बहुत अच्छी तरह की गई है। ब्रह्मचारी को हिंसा और निन्दा से दूर रहना चाहिए। गृहस्थाश्रम के सहारे ही अन्य तीन आश्रम अपना जीवन-निर्वाह करते हैं। इसलिए गृहस्थाश्रम सभी आश्रमों में श्रेष्ठ है। वर्ण की दृष्टि से किसी के साथ भेदभाव नहीं करना चाहिए। वर्ण कर्म से बने हैं, जन्म से नहीं।




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