चंद्रशेखर वेंकट रामन का जन्म तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली शहर में 7 नवम्बर 1888 को हुआ था, जो कि कावेरी नदी के किनारे स्थित है। इनके पिता चंद्रशेखर अय्यर एक स्कूल में पढ़ाते थे। वह भौतिकी और गणित के विद्वान और संगीत प्रेमी थे। चंद्रशेखर वेंकट रामन की माँ पार्वती अम्माल थीं। उनके पिता वहाँ कॉलेज में अध्यापन का कार्य करते थे और वेतन था मात्र दस रुपया। उनके पिता को पढ़ने का बहुत शौक़ था। इसलिए उन्होंने अपने घर में ही एक छोटी-सी लाइब्रेरी बना रखा थी। रामन का विज्ञान और अंग्रेज़ी साहित्य की पुस्तकों से परिचय बहुत छोटी उम्र से ही हो गया था। संगीत के प्रति उनका लगाव और प्रेम भी छोटी आयु से आरम्भ हुआ और आगे चलकर उनकी वैज्ञानिक खोजों का विषय बना। वह अपने पिता को घंटों वीणा बजाते हुए देखते रहते थे। जब उनके पिता तिरुचिरापल्ली से विशाखापत्तनम में आकर बस गये तो उनका स्कूल समुद्र के तट पर था। उन्हें अपनी कक्षा की खिड़की से समुद्र की अगाध नीली जलराशि दिखाई देती थी। इस दृश्य ने इस छोटे से लड़के की कल्पना को सम्मोहित कर लिया। बाद में समुद्र का यही नीलापन उनकी वैज्ञानिक खोज का विषय बना।
- छोटी-सी आयु से ही वह भौतिक विज्ञान की ओर आकर्षित थे।
- एक बार उन्होंने विशेष उपकरणों के बिना ही एक डायनमों बना डाला।
- एक बार बीमार होने पर भी वह तब तक नहीं माने थे जब तक कि पिता ने 'लीडन जार' के कार्य का प्रदर्शन करके नहीं दिखाया।
- रामन अपनी कक्षा के बहुत ही प्रतिभाशाली विद्यार्थी थे।
- उन्हें समय-समय पर पुरस्कार और छात्रवृत्तियाँ मिलती रहीं।
- अध्यापक बार-बार उनकी अंग्रेज़ी भाषा की समझ, स्वतंत्रप्रियता और दृढ़ चरित्र की प्रशंसा करते थे।
- केवल ग्यारह वर्ष की उम्र में वह दसवीं की परीक्षा में प्रथम आये।
- मद्रास के प्रेसीडेंसी कॉलेज में पहले दिन की कक्षा में यूरोपियन प्राध्यापक ने नन्हें रामन को देखकर कहा कि वह ग़लती से उनकी कक्षा में आ गये हैं------
भौतिकी का नोबेल पुरस्कार सन् 1927 में, अमेरिका में, शिकागो विश्वविद्यालय के ए. एच. कॉम्पटन को 'कॉम्पटन इफेक्ट' की खोज के लिये मिला। कॉम्पटन इफेक्ट में जब एक्स-रे को किसी सामग्री से गुज़ारा गया तो एक्स-रे में कुछ विशेष रेखाएँ देखी गईं। (प्रकाश की तरह की एक इलेक्ट्रोमेगनेटिक रेडियेशन की किस्म)। कॉम्पटन इफेक्ट एक्स-रे कणीय प्रकृति के कारण उत्पन्न होता है। रामन को लगा कि उनके प्रयोग में भी कुछ ऐसा ही हो रहा है।
प्रकाश की किरण कणों (फोटोन्स) की धारा की तरह व्यवहार कर रही थीं। फोटोन्स रसायन द्रव के अणुऔं पर वैसे ही आघात करते थे जैसे एक क्रिकेट का बॉल फुटबॉल पर करता है। क्रिकेट का बॉल फुटबॉल से टकराता तो तेज़ी से है लेकिन वह फुटबॉल को थोड़ा-सा ही हिला पाता है। उसके विपरीत क्रिकेट का बॉल स्वयं दूसरी ओर कम शक्ति से उछल जाता है और अपनी कुछ ऊर्जा फुटबाल के पास छोड़ जाता है। कुछ असाधारण रेखाएँ देती हैं क्योंकि फोटोन्स इसी तरह कुछ अपनी ऊर्जा छोड़ देते हैं और छितरे प्रकाश के स्पेक्ट्रम में कई बिन्दुओं पर दिखाई देते हैं। अन्य फोटोन्स अपने रास्ते से हट जाते हैं—न ऊर्जा लेते हैं और न ही छोड़ते हैं और इसलिए स्पेक्ट्रम में अपनी सामान्य स्थिति में दिखाई देते हैं।
फोटोन्स में ऊर्जा की कुछ कमी और इसके परिणाम स्वरूप स्पेक्ट्रम में कुछ असाधारण रेखाएँ होना 'रामन इफेक्ट' कहलाता है। फोटोन्स द्वारा खोई ऊर्जा की मात्रा उस द्रव रसायन के द्रव के अणु के बारे में सूचना देती है जो उन्हें छितराते हैं। भिन्न-भिन्न प्रकार के अणु फोटोन्स के साथ मिलकर विविध प्रकार की पारस्परिक क्रिया करते हैं और ऊर्जा की मात्रा में भी अलग-अलग कमी होती है। जैसे यदि क्रिकेट बॉल, गोल्फ बॉल या फुटबॉल के साथ टकराये। असाधारण रामन रेखाओं के फोटोन्स में ऊर्जा की कमी को माप कर द्रव, ठोस और गैस की आंतरिक अणु रचना का पता लगाया जाता है। इस प्रकार पदार्थ की आंतरिक संरचना का पता लगाने के लिए रामन इफेक्ट एक लाभदायक उपकरण प्रमाणित हो सकता है। रामन और उनके छात्रों ने इसी के द्वारा कई किस्म के ऑप्टिकल ग्लास, भिन्न-भिन्न पदार्थों के क्रिस्टल, मोती, रत्न, हीरे और क्वार्टज, द्रव यौगिक जैसे बैन्जीन, टोलीन, पेनटेन और कम्प्रेस्ड गैसों का जैसे कार्बन डायाक्साइड, और नाइट्रस ऑक्साइड इत्यादि में अणु व्यवस्था का पता लगाया।
रामन अपनी खोज की घोषणा करने से पहले बिल्कुल निश्चित होना चाहते थे। इन असाधारण रेखाओं को अधिक स्पष्ट तौर से देखने के लिए उन्होंने सूर्य के प्रकाश के स्थान पर मरकरी वेपर लैम्प का इस्तेमाल किया। वास्तव में इस तरह रेखाएँ अधिक स्पष्ट दिखाई देने लगीं। अब वह अपनी नई खोज के प्रति पूर्णरूप से निश्चिंत थे। यह घटना 28 फ़रवरी सन् 1928 में घटी। अगले ही दिन वैज्ञानिक रामन ने इसकी घोषणा विदेशी प्रेस में कर दी। प्रतिष्ठित पत्रिका 'नेचर' ने उसे प्रकाशित किया। रामन ने 16 मार्च को अपनी खोज 'नई रेडियेशन' के ऊपर बंगलौर में स्थित साउथ इंडियन साइन्स एसोसिएशन में भाषण दिया। इफेक्ट की प्रथम पुष्टि जॉन हॉपकिन्स यूनिवर्सटी, अमेरिका के आर. डब्लयू. वुड ने की। अब विश्व की सभी प्रयोगशालाओं में 'रामन इफेक्ट' पर अन्वेषण होने लगा। यह उभरती आधुनिक भौतिकी के लिये अतिरिक्त सहायता थी।
विदेश यात्रा के समय उनके जीवन में एक महत्त्वपूर्ण घटना घटित हुई। सरल शब्दों में पानी के जहाज़ से उन्होंने भू-मध्य सागर के गहरे नीले पानी को देखा। इस नीले पानी को देखकर श्री रामन के मन में विचार आया कि यह नीला रंग पानी का है या नीले आकाश का सिर्फ़ परावर्तन। बाद में रामन ने इस घटना को अपनी खोज द्वारा समझाया कि यह नीला रंग न पानी का है न ही आकाश का। यह नीला रंग तो पानी तथा हवा के कणों द्वारा प्रकाश के प्रकीर्णन से उत्पन्न होता है क्योंकि प्रकीर्णन की घटना में सूर्य के प्रकाश के सभी अवयवी रंग अवशोषित कर ऊर्जा में परिवर्तित हो जाते हैं, परंतु नीले प्रकाश को वापस परावर्तित कर दिया जाता है। सात साल की कड़ी मेहनत के बाद रामन ने इस रहस्य के कारणों को खोजा था। उनकी यह खोज 'रामन प्रभाव' के नाम से प्रसिद्ध है------
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