गीता मे लिखे उपदेश किसी एक मनुष्य विशेष या किसी खास धर्म के लिए नही है, इसके उपदेश तो पूरे जग के लिए है। जिसमे आध्यात्म और ईश्वर के बीच जो गहरा संबंध है उसके बारे मे विस्तार से लिखा गया है। गीता मे धीरज, संतोष, शांति, मोक्ष और सिद्धि को प्राप्त करने के बारे मे उपदेश दिया गया है।
आज से हज़ारो साल पहले महाभारत के युद्ध मे जब अर्जुन अपने ही भाईयों के विरुद्ध लड़ने के विचार से कांपने लगते हैं, तब भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। कृष्ण ने अर्जुन को बताया कि यह संसार एक बहुत बड़ी युद्ध भूमि है, असली कुरुक्षेत्र तो तुम्हारे अंदर है। अज्ञानता या अविद्या धृतराष्ट्र है, और हर एक आत्मा अर्जुन है। और तुम्हारे अन्तरात्मा मे श्री कृष्ण का निवास है, जो इस रथ रुपी शरीर के सारथी है। ईंद्रियाँ इस रथ के घोड़ें हैं। अंहकार, लोभ, द्वेष ही मनुष्य के शत्रु हैं।
गीता हमे जीवन के शत्रुओ से लड़ना सीखाती है, और ईश्वर से एक गहरा नाता जोड़ने मे भी मदद करती है। गीता त्याग, प्रेम और कर्तव्य का संदेश देती है। गीता मे कर्म को बहुत महत्व दिया गया है। मोक्ष उसी मनुष्य को प्राप्त होता है जो अपने सारे सांसारिक कामों को करता हुआ ईश्वर की आराधना करता है। अहंकार, ईर्ष्या, लोभ आदि को त्याग कर मानवता को अपनाना ही गीता के उपदेशो का पालन करना है।
गीता सिर्फ एक पुस्तक नही है, यह तो जीवन मृत्यु के दुर्लभ सत्य को अपने मे समेटे हुए है। कृष्ण ने एक सच्चे मित्र और गुरु की तरह अर्जुन का न सिर्फ मार्गदर्शन किया बल्कि गीता का महान उपदेश भी दिया। उन्होने अर्जुन को बताया कि इस संसार मे हर मनुष्य के जन्म का कोई न कोई उद्देशय होता है। मृत्यु पर शोक करना व्यर्थ है, यह तो एक अटल सत्य है जिसे टाला नही जा सकता। जो जन्म लेगा उसकी मृत्यु भी निश्चित है। जिस प्रकार हम पुराने वस्त्रो को त्याग कर नए वस्त्रो को धारण करते है, उसी प्रकार आत्मा पुराने शरीर के नष्ट होने पर नए शरीर को धारण करती है। जिस मनुष्य ने गीता के सार को अपने जीवन मे अपना लिया उसे ईश्वर की कृपा पाने के लिए इधर उधर नही भटकना पड़ेगा।
DOWNLOAD-गीता हमे क्या सीखाती है।
No comments:
Post a Comment